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आदिवासी बाहुल्य क्षेत्रों में शिक्षा स्तर बढ़ाने के लिए जिम्मेदार अधिकारी भी इस ओर कितना लापरवाह हैं,आदिवासी बाहुल्य क्षेत्र शिक्षा में अधिक पिछड़ा होने का कारण भी तलाशना होगा। जहां शासन की स्कूलों में पढ़ने वाले बच्चे जिसे देश का भविष्य कहा जाता है,जब वही स्कूल में बैठकर अपने आप को असुरक्षित महसूस करें तो वहां शिक्षा स्तर का बढ़ना भी मुश्किल है वर्तमान में शासकीय स्कूलों की हालात कितनी जर्जर हो चुकी है ये कोई देखने वाला नही है। शासन-प्रशासन के जिम्मेदार अधिकारियों का भी इस ओर ध्यान नहीं है जिले में कई ऐसी स्कूले है जिनकी स्थिति इतनी जर्जर हो चुकी है की कमरों में बैठने से ज्यादा सुरक्षित शिक्षक बाहर पढ़ाना सुरक्षित महसूस करते है। मामला थांदला तहसील के शा.उ.मा.वि कुकडीपाडा संकूल के अंतर्गत आने वाली शासकीय प्राथमिक विद्यालय नोगावां सोमला का है यहां आज भील प्रदेश विद्यार्थी मोर्चा के युवा योगेश कटारा,मुकुंद भाबर,शुभाष सिंगाड, निर्मल कटारा व अन्य पदाधिकारियों ने निरीक्षण किया।यहां स्कूल की छत काफी जर्जर हो चुकी है। तथा बच्चे भी भय के साथ पढ़ाई करने पर मजबूर हैं।स्कूल की छत कभी भी गिर सकती है और कभी भी बड़ा हादसा हो सकता।ऐसे में बड़ा सवाल यह उठता है की क्या शासन-प्रशासन के जिम्मेदार अधिकारी किसी बड़े हादसे का इंतजार कर रहे है?