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दिलीपसिंह भूरिया
अलीराजपुर जिले को उन्नत जिला बनाया जा सकता है लेकिन जिले में जो सरकार और प्रशासन है साथ ही जनप्रतिनिधि है वो कुछ भी करना नही चाहते जो आजादी के बाद से चला आ रहा है वैसा ही चलने दो की नीति पर सभी काम कर रहे है जिले की स्थिति हर प्रकार से बेहद ही चुनौती पूर्ण है लेकिन आज तक किसी भी राजनेता या जनप्रतिनिधि और प्रशासनिक अधिकारी ने इसके लिए कोई व्यवस्थित योजना नही बनाई और ना ही ऐसा कुछ करने की मन में जिज्ञासा रखी ।अलीराजपुर जिले के लिए एक प्रचलित वाक्य आज सुनने में जरूर मिलेगा ।वो है अलीराजपुर जिला प्रशासनिक अधिकारियों के लिए या तो काला पानी है या कमाने की जगह पूरे प्रदेश में शिक्षा में फिसड्डी साबित हो चुका जिला आज भी शिक्षको के अभाव में स्कूलों के संचालन के लिए मजबूर है ।बेरोजगारी इतनी है की जिले के अस्सी फीसदी आदिवासी जनसंख्या पलायन को मजबूर है । सेकडो एकड़ उपजाऊ भूमि खेती के लायक है लेकिन पानी की समुचित व्यवस्था नहीं है ।आज भी कई गावो और घरों तक बिजली की पहुंच नही है
। अलीराजपुर जिले के किनारे से मध्यप्रदेश की जीवनदायनी नही मां नर्मदा गुजरती है लेकिन आज भी कई लोगो को पीने का पानी नही और हर गांव पानी की टंकिया और पाइप लाइन का जाल घर घर तक बिछ चुका है पता नही कब उन गरीबों के घरों की नल की टोटियो में पानी आएगा कई गांवों में आज भी गली मोहल्लों में लोग सड़को का इंतजार कर रहे है सिर्फ मिट्टी डालकर अपने घर के आंगन को कब तक सड़क मानते रहेंगे । शासकीय स्वास्थ्य सुविधाएं होने के बाद भी अनपढ़ बांग्लादेशी बंगाली डाक्टरों के हवाले है जो गरीब आदिवासियो को बिना किसी प्रशिक्षण के बिना किसी मानक के दवाइयों दी जा रही है जिससे आदिवासियो की शारीरिक क्षमता कम हो सकती है और आने वाली पीढ़ी अपंग और कमजोर बन सकती है ।जिले के आम नागरिक चाहे तो जिले को विकसित बना सकते है उसके लिए राजनेतिक पार्टियां और जनप्रतिनिधि जिला प्रशासन और के अलावा आम नागरिकों को एक साथ इसके लिए आना होगा ।जो संभव नहीं क्योंकि राजनेता खुद को ही सब कुछ और कर्ताधर्ता बता देते है चाहे वो काम प्रशासनिक और आम नागरिकों और मजदूर ने बनाया हो । फिर भी खुद की नाम और पद वाली एक तख्ती लगाने से भी बाज नहीं आते ।