
सुनिल डामर
रतलाम,झाबुआ,अलीराजपुर(म.प्र) आज दिनांक 03/05/2022 को आखातीज मनाई जा रही है।आज जिले के सभी गाँवों में बरसों से हमारे पुरखों पूर्वजों द्वारा लगभग एक समान आखातीज मनाई जाती है।आदिवासी क्षेत्रों में आखातीज से लेकर अगले साल आने वाली आखातीज तक पुरा साल माना जाता है।आखातीज के दिन हर आदिवासी किसान चंद्रमा के दर्शन करके अपने खेत में थोडी देर के लिए हल जोतता है।और हल बैलों की पूजा करता है महिलाएं खेत में कचरा इकठ्ठा करके सात या पाँच छोटे-छोटे कचरे-कुटटे के ढेर बनाकर जलाती है।आज से संपूर्ण आदिवासी समुदाय अपने खेतों की साफ-सफाई करने में लग जाते हैं।आने वाली फसल बोने के लिए खेत तैयार के लिए और आज के दिन भर फुर्सत निकालकर किसी पेड के नीचे छांव में दाल-पानिये या सेवईयाँ बनाकर परिवार में मिल बाँटकर खाये जाते है।और छोटीे लडकियों द्वारा खाखरे के पत्ते के दुल्हा-दुल्हन का जोडा बनाकर पुरी आदिवासी परंपरा, रीति-रिवाज के अनुसार शादी कराई जाती है उसके पश्चात उनको सुरक्षित रख लिया जाता है।और बुजुर्गों की सलाह पर पहली बारिश होते ही उसे पानी मे बहाया जाता है।बुजुर्गों का कहना है।ऐसा करने से लडकियों को शादी के लिए अच्छा परिवार मिलता है और पारिवारिक जीवन किसी प्रकार की समस्याएँ नही आती है।आज के ही जो बच्चे 15 -20 दिन से होलकडी (छोटा हल लेकर )लेकर गांव-गांव घुमकर अच्छी बारिश की कामना करते हैे। उनको हर घर से कुछ अनाज दिया जाता है।वह आज के दिन गाँवों में घुमना समाप्त कर देते है और इकठ्ठा किया हुआ अनाज को आधा बेचकर और आधा पिसाकर गाँव या फलिये में सभी को एक साथ भोजन कराते है।और उन बच्चों को बुजुर्गों द्वारा आर्शीवाद दिया जाता है।और उनके पास होलकडी (छोटे हल को)पहली बारिश में बहाने की सलाह दी जाती है।और आज के दिन से नया साल मानते हूए अपनी जमीनो को गिरवे रखा जाता है।या छुडाया जाता है।और साहुकारों से भी लेन-देन शुरू होता है।आज का दिन आदिवासियों के जीवन का बडा हर्षोल्लास भरा रहता है।पुराने मन-मुटाव भुलाकर एक साथ मौज-मस्ती की जाती है।और छोटे बच्चों का तो जवाब ही नही पेडो के नीचे हठ-खेलियाँ देखकर बडे -बुजुर्ग भी बच्चों के साथ खेलने लग जाते है।यह है आदिवासी के जीवन में आखातीज का महत्व !
हमारे बुजुर्ग माता-पिता एवं परिवार के सदस्य हमारे पुरखों पूर्वजों द्वारा मनाई जाने वाली परंपरा,अखातीज मनाते हुए आने वाली नई पीढ़ी को समझाते हुए आज के दिन”