लो भियां मैं फिर आ गिया कुछ कही-अनकही के साथ…. भी वो केते है कि नी अस्तिन में ही साफ पाल लिया… ऐसेई भियां कमलगटटे अस्तिन के सांप के रूप में कालापाल को पाल रिये है… जो अपने स्वार्थ के लिए लुगाई को तक बेच दे….! खैर भियां अपने को क्या लेना देना… बच्चों को बेचे की लुगई को…. पर भियां… इस बार कमलगटटो की नजर स्कूल में मिलने वाले खिलौनों पर पड गई… माना भियां रूपयें को सब को छिये… पर भियां आटे में थोडा नमक कम मिलाओ… तुमने तो… पुरा नमक ही नमक कर दिया…।
भियां इस काले खेल का पुरा मास्टर माइन्ड काला पाल है… जो कभी गुमान का तो कभी लक्ष्मण का नाम ले लेकर इस पुरे खेल को खेल रिया था… भियां ऐसा लग रिया था काला पाल और उसके कमलगटटे साथियों के बच्चें भूखे मर रिये थे… और उनकी भूख… इसकुली बच्चों के खेल खिलौने पर डाका डालकर ही भर सकती थी… और इनकी लुगाईयों के टीकी पाउडर के लिए पैसे नी होगे… तभीईज तो खेल खिलौने 700 के दिए और मांग रिये है 5 हजार… वाह काले पाल वाह…. मेहनत करों और कमाओ… ऐसे काले कारनामें कर के क्या मिलेगा… बच्चे तो तुमारे है… दुसरे के थोडिईज… जरा शर्म करो.. बडे कमलगटटों ने तुमको पद दिया है उसका तो मान रखों… और हां… गरीब मजलुम पर अत्याचार कर तुम अपने घर को पाल नी सकते… वो तो एक दिन निकलईज जाता है… अब वो जमाने भी गए… अब सब जागरूक हो गिये है… महिला को मार कर ताकत क्या दिखाते हो… कभी दो दो हाथ किसी से आजमा कर देखो…. गरीबो और मजलुमों पर तो हर कोई हाथ आजमाता है… अपने घर की धोओ….
भियां अब में जा रिया हुं… जाते जाते एक बात और बिता दुं… भियां कालेपाल… तुम जो कमलगटटों के जिलाध्यक्ष बनने का सपना देख रिये हो… वो तो अभी साकार नही होगा… और जो तुम अपनी रोटियां गुमान और लक्ष्मण के नाम पर सेक रिये हो… एक दिन वो भी निकल जायेगी… जल्द ही और बिताउंगा… अगले अंक में…. अभी थोडा जल्दी है… अब जा रिया… जय राम जी की।