आपका भियां निकलेश डामोर
ये लक्ष्मी यंत्र है भाई यहां हर कोई इसकी चाह में बिक ही जाता है… और बिकता भी ऐसा है कि जैसे उनके बच्चे भुखे मर रहे है… आप लोगों ने आबकारी विभाग की कार्रवाई तो देखी ही होगी ये तस्करों को रोकने की बजाय छोटे छोटे महुवे की शराब विक्रेताओं को पकड उन पर कार्रवाई करते है और बडी मछली आसानी से निकल जाती है उसी तरह खनिज विभाग है जो माफियाओं के सामने इनता नतमस्तक है कि रात के अंधेरे में अवैध रेत की तस्करी करने वालों को पकडने की बजाय छोटे छोटे ट्रेक्टर ट्रालियों में रेत बेचने वालों पर ही कार्रवाई करते है। क्योकि इन्हे भी अच्छे लक्ष्मी यंत्रों की सौगात मिलती है।
जी हां हम बात कर रहे है झाबुआ जिले से रात के अंधेरे में गुजरती अवैध रेत से भरी ओवरलोड गाडियों की। जिनके पास राॅयल्टी नही होती अगर होती भी है वो भी डुप्लीकेट होती है… ऐसे ही रानापुर के दो माफिया है एक तो शांतिलाल और दुसरा गुंडा बदमाश हैदर जो बैखौफ होकर अवैध रेत का कारोबार जिले भर में कर रहे है जिनके सामने खनिज विभाग भी नतमस्तक है… सुत्रों की माने तो हैदर गुंडा बदमाश की लिस्ट में भी शामिल है जिस पर पहले जिला बदर की कार्रवाई भी हो चुकी है ये दोनों फुल दादागिरी से इस काले कारोबार को चला रहे है। जो बिना दस्तावेज और राॅयल्टी के झाबुआ, अलीराजपुर और रतलाम में इस अवैध कारोबार को कर रहे है और इस कारोबार को करने में सरकारी मुलाजिंम भी इनकी मदद करता है इन दोनों ने मिल कर ग्रुप बना रखा है जिसमे 35 गाडियां चलती है… इनका कहना है नोटों के दम पर हम अधिकारियों को खरीद लेते है और वो हमारे पीछे पीछे दुम हिलाते नजर आते है… सुत्रों का तो यह भी कहना है कि ये लोगों को कहते फिरते है कलेक्टर तक हम बंदी पहुंचाते है… तभी तो हमारा कोई कुछ नही बिगाड पाता…।
खनिज विभाग में इनकी सेटिंग इतनी पक्की है कि जब गुजरात से ये नियमों को तांक में रख रेत से भरी ओवरलोड गाडी लाते है तो मध्यप्रदेश में एक नियम है अंतरराज्यीय टेक्स पर्च 25 टन की कटवानी पडती है अगर वो पर्ची नही होती तो राॅयल्टी अवैध मानी जाती है जो इनके पास नही होती है… और शिकायत पर अधिकारी पकडते भी है तो ये ऑनलाइन राॅयल्टी कटवा लेते है जो लीगल नही होती है… मगर जब अधिकारी ही नतमस्क है तो क्या करें… अगर उचित कार्रवाई हो तो… समय सीमा देखी जाये… तब ही दुध का दुध और पानी का पानी होगा।
शासन को लगा रहे है लाखों का चुना
सुत्रों का कहना है कलेक्टर साहब को तो युं ही ये गुंडे बदमाश बदनाम कर रहे है असल मेें तो शांतिलाल पडियार और हैदर का खनिज विभाग से अच्छा खासा गठजोड है… क्योंकि विभाग के लोगों को गांधी छापों की अच्छी सौगात मिलती है… तभी तो ये इन अवैध कारोबारियों को संरक्षण दे रहे है और शासन को लाखों रूपयों का चुना लगा रहे है। ऐसे कर्मचारियों की वजह से ही प्रदेश सरकार को लोन लेना पडता है अगर ये अपने कर्तव्यों का सही ढंग से निर्वहन करे तो राज्य सरकार को काफी राहत मिल सकती है… और कलेक्टर की छवि धुमिल करने वाले ऐसे अपराधियों पर सख्त कार्रवाई होनी चाहिए।