मोह के धागों को काटकर मोक्ष प्राप्त करना अंतिम लक्ष्य मुमुक्षु सिद्धि राका
परिवेश पटेल रायपुरिया
सिद्धि सुरेंद्र राय का मुंबई में जैन भगवती दीक्षा उनके कार्य करेगी रायपुरिया के इतिहास में 45 वर्ष बाद ऐसा अवसर आ रहा है जब कोई किशोर व या बालिका मोक्ष मार्ग पर अग्रसर होने को तत्पर है अपने निवास पर मुमुक्षु बालिका सिद्धि ने पत्रकारों से विशेष मुलाकात में बताया की वीतराग के मार्ग पर अग्रसर होने की प्रेरणा उसे अपनी मौसी तथा मामा से प्राप्त हुई जो पूर्व में जैन भगवती दीक्षा ग्रहण कर चुके हैं सिद्धि ने बताया कि वह आत्म कल्याण के लिए संयम का व्रत अंगीकार कर रही है यह पूछे जाने पर की सांसारिक जीवन को छोड़कर कठोर तपस्या व शारीरिक कष्ट का जीवन अपनाना किस प्रकार संभव हो सकेगा इस पर मुमुक्षु सिद्धि ने कहा कि बीते कुछ वर्षों में उसने मनोयोग से तपस्वी जीवन का पूर्वाभ्यास किया है जैन आगम कंठस्थ किए हैं तथा जनत्व के संस्कारों का कठोरता से अनुसरण किया है इसलिए मुझे इस मार्ग पर अग्रसर होते हुए आनंद का अनुभव हो रहा है सिद्धि ने कहा कि मनुष्य जीवन में कर्मों की निर्जला तथा सचित अवस्था में पाठकों से दूरी यह आत्म कल्याण के लिए आवश्यक है मोह को त्यागना हमारे लिए परम आवश्यक है हम मुंह के धागों को काटकर ही आत्म कल्याण के लक्ष्य की प्राप्ति कर सकते हैं सिद्धि ने बताया कि उसके परिवार में पहले भी कई सदस्यों ने साधु जीवन स्वीकार किया है माता पिता तथा गुरु भगवंत की कृपा की वजह से वह स्वयं को इस योग्य बना पाई की दीक्षित हो सके सिद्धि ने कहा कि मानव जीवन में सहज होकर ईर्ष्या घृणा मोह लोग मद आदि दुर्गुणों से परहेज करते हुए प्रभु महावीर के संदेश के अनुरूप अपने जीवन को ढाल पाना मोक्ष की एकमात्र गारंटी है इसीलिए वह इस मार्ग की पथिक बनी हेै ।