@वॉइस ऑफ झाबुआ
हमारे देश में लोकसंस्कृति ,धर्म और आस्था को अधिक महत्व दिया जाता है, ओर आस्था और विश्वास के कई उदाहरण देखने,सुनने और पढ़ने को मिलते है। इन्ही आस्थाओं में से वर्षो पुरानी एक परम्परा आज भी कायम है जिसे चूल कहते है जिसमें लोग अपनी मन्नन्त उतारने के लिए धधकते अंगारो पर चलते है।
चलते है दहकते अंगारो पर
इसी क्रम में होलिका दहन के दूसरे दिन अर्थात धुलेंडी के दीन अंचल में भक्तोंने अपनी मन्नतो को पूरा करते हुए चूल पर चलने की परम्परा का निर्वाहन किया।
माता हिंगलाज ओर भोलेनाथ की जयकारों से हुई शुरुआत
पेटलावद से लगे ग्राम टेमरिया में शुक्रवार को वर्षों पुरानी परंपराओं का निर्वहन करते हुए दहकते अंगारों व आग की लपटों के बीच हाथ में आस्था का कलश लिए 50 से अधिक ग्रामीणों का कारवां गुजरा तो पूरा अंचल माता हिंगलाज व भोलेनाथ के जयकारों से गूंज उठा चूल में चलने वालों में बच्चे महिला एवं पुरुष शामिल शामिल हुऐ।
कइयों ने उतारी मन्नते
इस वर्ष इस चूल पर चलने के लिये न सिर्फ आसपास के लोग बल्कि हरियाणा राज्य के कथ के हारवेस्ट संचालक शिवकुमार ने भी अपनी मनोकामना पूरी होने पर धधकते अग्नि पथ पर चला वहीं ग्राम टेमरिया के 7वी कक्षा के छात्र दिनेश ने भी दहकते अंगारो पर चलकर मन्नत पूरी की। वही कई महिला और पुरुषों ने छोटे छोटे बच्चों को गोद मेंलेकर ओर कंधे पर बिठाकर दहकते अंगारो पर नन्गे पाव चले।
ऐसे की जाती है चुल तैयार
लकड़ीयो के बड़े ढेर को भोलेनाथ मंदिर के प्रांगण में करीब 8 फीट लंबे 2 फीट से अधिक गहरे गड्ढों में एक साथ जलाया जाता है जब लकड़ी जलकर अंगारो का आकर ले लेती है तब ग्राम से इकट्ठा किया गया करीब 10 किलो से अधिक शुद्ध घी को उस में डाल कर उसकी लोह को और तेज किया जाता है तब मन्नत धारी हाथ में आस्था का कलश लिए हुए उस पर से गुजरते हैं.|
हल्दी मेहंदी की रस्म
इसके पूर्व स्थानीय धर्मशाला में सभी श्रद्धालु एक साथ इकट्ठा होते हैं जहां उन्हें मेहंदी एवं हल्दी की रस्म के साथ मंगल गीत गाते हुए ढोल और जयकारों के बीच मन्नत धारी इन दहकते अंगारों पर चलकर अपनी आस्था पुरी करते हैं।
नही आती खरोच
उल्लेखनीय है कि इन मन्नत धारियों के अंगारों पर नंगे पांव चलने के बावजूद भी इनके पा व में खरोच तक नहीं आती जो कि मन्नत धारियों और आमजन तथा भक्तों की आस्था का प्रतीक माना जाता है।