शबरी जयंती के निमित्त कार्यक्रम रखा गया रखा गया जिसके अंतर्गत संत श्री गंगाराम जी महाराज देवदा के द्वारा बताया गया कि भील भक्ति भगवान क्या है इसके तहत मा इसके तहत महाराज जी ने बताया की भगवान ने सृष्टि के निर्माण के समय जब तपस्या की तब कोई मानव जाति नहीं थी इसके बाद मानव जाति की उत्पत्ति के संबंध में भगवान ने तपस्या की तब भगवान ने एक हाथ मसल कर भील चौकीदार का सर्जन किया इसके बाद भगवान ने फिर भील चौकीदार को कहा की मैं तपस्या करने जा रहा हूं, जब तक मैं तपस्या में लीन रहु तब तक इस रास्ते में कोई भी नहीं आए ऐसा कर कर भगवान तपस्या में लीन हो गए तब तपस्या पूर्ण होने पर , तब भगवान को ऐसा लगा की मैंने तपस्या की है तो इस भील चौकीदार ने भी भी तपस्या की है अभिषेक मेहताब ने भी तपस्या की दोनों की तपस्या में कितना फर्क है इस बात को देखने के लिए भगवान ने मानव जाति का रूप धारण कर उस भील चौकीदार से कहा कि मुझे भगवान से मिलने जाना है तब भील ने कहा कि जब तक भगवान तपस्या से बाहर नहीं आए तब तक आप भगवान से नहीं मिल सकते इसी तरह दोनों में बहस हुई तो भगवान ने देखा कि दोनों ही की तपस्या बराबर है तबसे आज तक भील समाज भगवान भक्ति के साथ हैं ।
शबरी के बारे ने नगरदास जी महाराज ने बताया कि शबरी माता जी है ना जब जंगल गए तब एक ऋषि मुनि स्कूल के ऋषि मुनि के आश्रम में उनको जगह नहीं दी गई प्रेम के आंगन में रास्ते की झाड़ू , बुआरी रास्ता साफ सफाई करना एवं जंगल से लकड़ियां लाकर चुपचाप रख देती, आदि सेवा वह निस्वार्थ भाव से करती रही जंगल में इसके तब जंगल मे मतंग ऋषि को पता चला ओर तब उन्होंने माँ शबरी को दीक्षा दी तब माँ शबरी को मतंग ऋषि ने बताया आप यही कुटिया में सेवा करो आपको राम कुटिया में ही मिलने आएंगे । माँ शबरी का श्री राम के प्रति जो तप था वह उन्होंने श्री राम के दर्शन पाए । हमारी भील जाति के लिये गौरव की बात है । संचालन गनपत जी मुनिया जिला संगठन मंत्री, आभार अलकेश मेड़ा युवा प्रमुख वनवासी कल्याण परिषद झाबुआ द्वारा किया गया विशेष योगदान महेश जी मुजाल्दे, दिनेश बिलवाल । अलग अलग गावो से पधारे संत गण ,सामाजिक कार्यकर्ता उपस्थित रहे ।