न लगी पुकार, न हुयीं गवाही ,वकीलों की हड़ताल का दूसरा दिन , हुआ कामकाज प्रभावित
नेसर्गिक न्याय के सिद्धांतों के लिये कोर्ट के अंदर पक्षकारो के हितों की पैरवी करने वाले वकील अब पीड़ितों के लिये डटे कोर्ट के बाहर, रहे कार्य से विरक्त
पेटलावद। सोमवार 13 फरवरी को पेटलावद अभिभाषक संघ ने निर्णय लेते हुए आगामी 15 फरवरी तक कार्य से विरत रहने का निर्णय लेते हुए समस्त अभिभाषक हड़ताल पर चले गए। 14 फरवरी को हड़ताल का दूसरा दिन रहा, ओर इस हड़ताल का खासा प्रभाव भी कोर्ट में देखने को मिला। पेटलावद की समस्त कोर्टो में कार्य प्रभावित हुआ।
नही हुई सुनवाई
अमूमन हर दिन कोर्ट में सामान्य कामकाज के दौरान पक्षकारो की भीड़ लगती है, । लेकिन अधिवक्ताओ के कार्य से विरत रहने के चलते कोर्ट में न तो पुकार लगी, न हाजरी हुई, न गवाही , न जिरह , न बयान कोर्ट की सारी प्रक्रिया थम गई । जिसके चलते दूर दराज से तारीख पर आये पक्षकारो को मायूस होकर लौटना पड़ा।जिससे कोर्ट का पूरा कामकाज पूर्ण रूप से प्रभावित हुआ।
मुख्य कारण जिनसे बनी ये स्थिति
माननीय उच्च न्यायालय द्वारा 25 सूचीबद्ध प्रकरणों को निराकरण हेतु दो माह का समय फिक्स किया था, अब नए आदेश अनुसार कोर्ट के सभी प्रकरण को 256 दिनों में निराकारण के लिए प्रदेश के सभी न्यायालय को निर्देश दिए हे।
*न्याय के उद्देश्यों की नही होती पूर्ति*
इस निर्देश के कारण अधीनस्थ कोर्टो में अभिभाषकों पर तनाव है बल्कि पक्षकारों के साथ न्याय भी नही हो रहा है । इस पूरे मामले को समझे तो कोर्टो में चल रहे सभी केसो लिस्ट तैयार दो उन्हे 25-25 प्रतिशत के चार भाग मे विभाजित का के उन सभि केसों को 64-64 दीन की तय समयावधि में सुनवाई पूरी करना है । इस मामले अधिवक्ताओं का मानना है कि जल्दबाजी में केस निपटाने के चक्कर मे पीड़ित या आरोपी को अपना पक्ष रखने का समुचित अवसर नही मिल पाता है जिससे सुनवाई के नैसर्गिक न्याय के सिद्धांत का अनुपालन नही होने से न्याय के उद्देश्यों की पूर्ति नही हो पाती है। उदाहरण के लिए यदि किसी कोर्ट मे 100 केस रहे तो 25-25 केस को 64 दिनों मे निराकरण का समय तय किया जाकर, सभी केसो मे सभि गवाहो के बयान, दस्तावेज पेश करना, जिरह करने के लिए मात्र ओर फैसले कस लिया दो से दाई दिन मे का समय मिलेगा जो किसी भी रूप मे सम्भव नहीं हे
*बढ़ रहा काम का दबाव*
वही काम की अधिकता के चलते अधिवक्ताओ के साथ ही साथ कोर्ट के कर्मचारियों पर काम का दबाव बढ़ने से अभिभाषकों के साथ ही साथ कोर्ट के कर्मचारियों और जजो ओर पॉलिस पर भी तमिली आदि हेतु को भी न्यायालयिन समय से अधिक समय तक कार्य करने के लिये बाध्य होना पड़ रहा है । जिससे इन सभी पर मानसिक ओर स्वास्थ्य पर विपरीत प्रभाव पड़ रहा है , ओर व्यवहारिक दिक्कतो का भी सामना करना पड़ता है।
*अब कोर्ट के बाहर भी लड़ रहे पक्षकारो की लडाई*
इस तरह से अपने पक्षकारो को न्याय दिलाने के लिए कोर्ट के अंदर उनकी पैरवी करने वाले वकील अब उन्ही पक्षकारो के हितों ओर नेसर्गिक न्याय के सिद्धांतों को बचाये ओर बनाये रखने के लिये इस विरोध के माध्यम से अधिवक्तागण पक्षकारो के लिये कोर्ट के बाहर भी लड़ाई लड़ रहे हे।
इन अधिवक्ताओ की रही सहभागिता रहे
इस अवसर पर अभिभाषक संघ के अध्यक्ष विनोद पुरौहित, सचिव बलदेवसिंह राठौर, उपाध्यक्ष कैलाश चौधरी, वरिष्ठ अधिवक्ता बी एल परमार, अरुण शर्मा, राजेन्द्र चतुर्वेदी, राजेन्द्र मोनन्त, अमृतलाल वोरा, एनके शाह, मनीष व्यास, अनिल देवड़ा, रहिलरजा मंसूरी, नीलेषसिह कुशवाह, विजेंद्र जादौन, मनोज पुरौहित, लक्ष्मीनारायण बेरागी, अविनाश उपाध्याय, जितेंद्र जायसवाल, रविराज पुरोहित,रूपम पटवा, दुर्गेश पाटीदार , राजेश यादव , दीपक बेरागी, ईश्वर परमार , मनीष गवली, देवीसिंह बामनिया, मनोहर डोडिया, साहिलरजा मंसूरी, कमलेश प्रजापति, संजय भायल, संजय राठौर, अजय परमार, अजय राठौर, विजय मुलेवा , चिरायु मोनन्त, विजय मुलेवा, , रविन्द्र मकवाना, हीरालाल ताड, खुशाल हिहोर,,राजपाल दौd, मीरा चौधरी,सुनीता जायसवाल सहित समस्त अभिभाषको ने दूसरे दिन भी विरोध स्वरूप काम बंद रखा।