दिलीपसिंह भूरिया
वर्षो से हिंदुस्तान की परंपरा रही है की रियासत और सियासत में जब वहा का राजकुमार देश और राज्य संभालने के काबुल हो जाए तो उसको गुरुकुल से बुलाकर राज और देश का संचालन करने का अधिकार दिया जाता है लेकिन आज देश में उल्टी गंगा बह रही है भारत की प्राचीन परम्पराओं और संकृति में युवाओं को हर काम करने का अवसर दिया जाता है ।राजा महाराजाओं ने युवाओं की प्रतिभा को कभी भी मरने नही दिया बल्कि उनको देश की सत्ता पर और नेतृत्व देकर विश्व में अपना नाम कमाने का मोका दिया परंतु जब से देश आजाद हुवा और देश में भारतीय संविधान और कानून के अनुसार युवाओं को नौकरी तो 21 वर्ष में मिल सकती है लेकिन नेतृत्व 60 साल के बाद ही मिलेगा जब वह अपनी सारी काम करने और कुछ बनने की इच्छाएं मार चुका होगा तब उसको बड़े पदों पर काबिज किया जाता है कुल मिलाकर जब उसकी उम्र निकल जाए और उसके बाद उसको हिमालय के शिखर पर पहुंचने के लिए रास्ते की बजाय एक संकरी पगडंडी थमा दि जाती है जिससे वह शिखर तक पहुंचकर अपनी सफलता हासिल कर सके लेकिन तब तक उसका जोश जुनून और कुछ कर गुजरने की सारी तमन्नाएं किसी ऑफिस के कोने में दम तोड़ चुकी होती है ।देश में राजनेताओं बड़े बड़े मंचो से देश को बागडोर यूवाओ को सोपने और संभालने की बात तो करते है लेकिन फेविकोल के मजबूत जोड़ की तरह खुद ही कुर्सी से जब तक जिंदगी की नैया डूब ना जाए तब तक चिपके रहते है ।और वही हाल शासकीय नोकरी और शासकीय विभागों में है देश का युवा नेतृव करने की चाह और बहुत कुछ बदलने की चाह रख नोकरी तो करने के लिए आ जाता है लेकिन उसको कुछ करना देना तो दूर उस कमरे से भी दूर रखा जाता है जहा से देश समाज और शिक्षा के विकाश की इबारत रखी जाती है ।वरिष्ठ और बुजुर्ग अधिकारी और कर्मचारी युवाओं को सिर्फ आदेश निर्देश करते रहते है की देश की युवा पीढ़ी को ऐसे काम करना चाहिए वैसे काम करना चाहिए लेकिन जब भी वो कुछ करेंगे तो अपनी वरिष्ठता का हवाला और अपने पद की बात करके उनको कुछ भी करने से पहले उस कोने वाले कमरे के दरवाजे से निकलने वाले आदेश का रास्ता देखना पड़ता है जिससे पूरे देश की नीव और देश की।उन्नति और प्रगति की बागडोर जिन युवाओं के कंधो पर होती है और वो है कच्चे और अच्छे लोग शिक्षा विभाग में हर वो बच्चा जो स्कूल में भर्ती होकर अपनी उन्नति की नीव मजबूत करने के लिए आता है लेकिन शिक्षा विभाग में युवाओं को मौका नहीं देकर वरिष्ठता को मौका प्राथमिकता देकर युवाओं का हमरा सिस्टम खुद उनका मनोबल तोड़ देता है और जब वह कुछ करने की उम्र के पड़ाव पर होता है तब उसको नेतृत्व की बागडोर दी जाती है ।यूवाओ को युवा अवस्था में ही देश की हर विभाग की बागडोर संभालने का मौका युवा अवस्था में ही मिलना चाहिए जिससे युवा अपनी काबिलियत को युवा अवस्था में ही साबित कर सके।।इसके लिए देश में पूरे सिस्टम को हो बदलना चाहिए यूवाओ को देश की अग्रिम पंक्ति के नेतृत्व की जवाबदारी देना चाहिए और वरिष्ठ और बुजुर्ग को सिर्फ ऑफिस की जो एक जगह हो ।